आखिर हम कब सीखेंगे- 'पैरेंटिंग'(परवरिश बच्चों की) 05

आखिर हम कब सीखेंगे- 'पैरेंटिंग'(परवरिश बच्चों की) 05
आज की शिक्षा सुविधापूर्ण जीवन-यापन के लिए दी जा रही है। शिक्षा देने-लेने की प्रक्रिया में भी खास ध्यान रखा जाता है। वे ही शैक्षणिक संस्थाये सबसे अधिक चलते है, जिनके पास सबसे अधिक सुविधा होती हैं। क्यूंकि आज मॉं-बाप भी बच्चों से शारीरिक परिश्रम का काम नहीं लेते हैं जिसके कारण वे शारीरिक रूप से सबल नहीं हो पाते है। कोर्इ काम करना पड़ जाए, तो बहुत जल्दी ही उनका दम फूलने लगता है। वे बहुत जल्दी थक जाते हैं। प्रधानमंत्री पं. नेहरु ने कहा था कि आराम हराम है। किन्तु आज हम उसी हराम के पीछ भागते दिखार्इ दे रहे हैं, हमारे समाज में आज सबसे बड़ा आदमी वही माना जाता है, जो सबसे ज्यादा सुख से रहता है। 

शिक्षा जीवन जीने की कला है। किन्तु हम कला के नाम पर कुछ नहीं सीखते हैं। जो लोग पढ़ार्इ न सीख कर कोर्इ हुनर सीख लेते हैं, वे हर मामले में काफी आगे देखे जाते हैं। आजकल व्यवसाय में जो लोग आगे हैं, वे इसी प्रकार की कला में पारंगत लोग हैं। आजकल जिस प्रकार की शिक्षा विद्यालयों में दी जा रही है, उसका व्यावहारिक जीवन से साथ कोर्इ सीधा सरोकार नहीं दिखता है। इस कारण थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति आने पर क्या किया जाये, समझ नहीं आता है। जैसे तैरने के लिए पानी में उतरना पड़ता है। पहले हमें विद्यार्थी को पानी से जोड़ना होगा, फिर उसे तैरने की कला सिखानी होगी। किन्तु आजकल पानी से जोड़े बिना हवा में सारी बातें हो रही हैं। आज संस्कार की शिक्षा तो पाठ्यक्रम से गायब ही कर दी गयी है। भारतीय संस्कार देने का मतलब यह हो गया कि हम उसे भोंदू बना रहे हैं, उसे वर्तमान के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। इस प्रकार के ज्ञान की क्या उपयोगिता है, कह कर उस प्रश्न चिह्न लगा दिया जा रहा है। भारतीयता से दूर ही पाश्चात्य तौर-तरीके ही आधुनिक होने के मापदंड बनते जा रहे हैं।

आज पढ़ने-लिखने का मतलब कुर्सी पर बैठ कर हुक्म चलाना हो गया है I पढ़े-लिखे लोगों को काम करने में लज्जा का अनुभव होता है I इसलिए समाज की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है I बुद्धि और हाथ का उपयोग सम्यक रूप से नहीं हो पा रहा है I इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज ज्ञान और कर्म के बीच मेलजोल खतम हो गया है I काम करने वाले के पास ज्ञान नही पहुँचता और ज्ञानी काम करना नहीं चाहता हैI आजकल विद्यार्थी, विद्यार्थी न रहे, परीक्षार्थी हो गये हैं

Indian Education Act की ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि: "भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।"

आजादी के 70 वर्षों के पश्चात भी आज हम लार्ड मैकाले की सफल शिक्षा-नीति का परिणाम स्पष्ट रूप से देख और भुगत रहे हैंI
.......🤔क्रमशः

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