वट सावित्री व्रत :~ पर्यावरण सापेक्ष हैं वटवृक्ष !!

शहरों में प्रकृति से नजदीकियों का एहसास कराते इन भारतीय व्रत-त्‍यौहारों का अर्थ अब खोने लगा है। परम्‍पराओं को जीवित रखने के लिये गर्मियों में सैकडों पालतू जानवरों और राहगीरों को अपनी पनाह में ठंडी छांव देनें वाले भारी भरकम बरगद के पेंड को बोनसाई बनाकर गमले में समेट कर परिपाटी का निर्वहन किया जा रहा है। विज्ञान ने हमें समझा दिया है कि पति की लम्‍बी उमर के लिये किये जाने वाले इस व्रत में पर्यावरण की सुरक्षा भी अंतरनिहित है, क्‍योंकि प्रकृति से ही मानव मात्र का जीवन है। किन्‍तु भीषण प्रदूषण से निबटते हुए आगामी पीढी के अनबूझ प्रश्‍नों का उत्‍तर देनें एवं इस व्रत की उपादेयता से परिचित कराने का यह भी एक तरीका ही है। 
वनस्पति विज्ञान की एक रिसर्च के अनुसार सूर्य की उष्मा का 27 प्रतिशत हिस्सा बरगद का वृक्ष अवशेषित कर उसमें अपनी नमी मिलाकर उसे पुनः आकाश में लौटा देता है। जिससे बादल बनता है और वर्षा होती है।वट वृक्ष प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करने के प्रमुख और महत्वपूर्ण स्रोत है। वट वृक्ष को पृथ्वी का संरक्षक भी कहा जाता है। वट वृक्ष प्रकृति से ताल-मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।महिलाएं अपने अखण्ड सौभाग्य के लिए आस्था और विश्वास के साथ व्रत रख कर पूजा अर्चना करती हैं।
सभी विवाहित महिलाओं को बट-सावित्री पर्व की शुभकामना।

Comments