गौतम बोधिसत्व !!

गौतम बुद्ध की जन्म-तिथि के विषय में बहुत मतभेद है। दीवान बहादुर स्वामिकन्नू पिल्लै के मत से बुद्ध का परिनिर्वाण ईसा पूर्व 478वें वर्ष में हुआ है। परन्तु महावंस तथा दीपवंस के अनुसार बुद्ध का परिनिर्वाण ईसा पूर्व 543वें वर्ष में हुआ था। इस मान्यता के अनुसार बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 632वें वर्ष में हुआ था।

बोधि का अर्थ होता है मनुष्य के उद्धार का ज्ञान और उसके लिए प्रयत्न करने वाला प्राणी(सत्व) ही बोधिसत्व है।
बोधिसत्व का कुल एवं बाल्यावस्था की जानकारी ‘त्रिपिटक’ में बहुत कम मिलती है। मज्झिमनिकाय के अट्ठकथा में गौतम के कुटुंब के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है। शुद्धोधन, शुक्लोदन, शक्योदन, धोतोदन और अमितोदन पांच भाई थे। अमिता देवी उनकी बहन थी। तथागत और नन्द शुद्धोदन के पुत्र थे।

‘सुत्तनिपात’ के अनुसार बुद्द्ध का जन्म लुम्बनी जनपद में हुआ था जहाँ एक शिला-स्तंभ मिली है जिसपर ‘लुमिनिगामे उबालिके कते’ पंक्ति खुदी हुई है। यह प्रमाणित करता है कि बोधिसत्व का जन्म लुम्बिनी में हुआ था। उस काल के बड़े-बड़े ज्योतिषाचार्यों ने उनकी जन्म-कुंडली में बत्तीस लक्षण देख कर एक ही भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राठ बनेगा या फिर सम्यक संबुद्द होगा। गौतम के जन्म- उत्सव की खबर जानकार असित ऋषि उस बालक को देखने रजा शुद्धोदन के महल पर आये और जब उन्होंने इस चमत्कारी बालक को देखा तो अनायास ही उनके मुख से एक वाक्य निकला, ‘यह मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ है।’ आगे चलकर यह कुमार सम्बुद्ध होने वाला है। 

स्वं बुद्ध ने अपने गृह-त्याग के कारण का वर्णन अत्तदण्डसुत् में किया है कि क्यूँ मुझमे वेराग्य उत्पन्न हुआ। अपर्याप्त पानी में जैसे मछलियाँ छटपटाती है वैसे ही एक-दूसरे से विरोध करके छटपटाने वालीप्रजा को देखकर मेरे अन्तकरण में भय उत्पन्न हुआ और चारो ओर का जगत असार दिखाई देने लगा, सब दिशायें काँप रही है ऐसा लगा और उसमे आश्रय का स्थान खोजने पर निर्भय स्थान नहीं मिला, क्यूंकि अंत तक सारी जनता को परस्पर विरुद्ध हुए देखकर मेरा जी उब गया।

बोधिसत्व का विवाह युवावस्था में हुआ था और गृह-त्याग करने से पहले उन्हें राहुल नाम का पुत्र हुआ था। राहुल के जन्म के बाद सातवें दिन बोधिसत्व ने गृह-त्याग दिया था। गृह-त्याग के पश्चात बोधिसत्व राजगृह( राजगीर, बिहार) चले गए , जहाँ उनकी मुलाकात बिम्बिसार से हुई और उन्होंने आलार कालाम से तत्वज्ञान की शिक्षा पायी। आलार कालाम को छोड बोधिसत्व उद्धक के पास चले गए। आलार कालाम और उद्धक राम्पुत्त दोनों एक ही समाधी-मार्ग सिखाते थे। अंतर सिर्फ दोनों में इतना ही था कि आलार कालाम समाधी की सात सीढियाँ बताता था और उद्धक रामपुत्त आठ। 

बोधिसत्व सिर्फ हठयोग और तपश्चर्या में ही ज्यादातर समय व्यतीत करते थे। परन्तु शारीर को स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट रखने के लिए कभी-कभी अच्छा भोजन भी किया करते थे और शांत समाधी का भी अनुभव किया करते थे। उन्हें बाद में अनुभव हुआ कि तपस्या निरर्थक है और उसके बिना भी मुक्ति मिल सकती है। अतः उन्होंने तपस्या का त्याग कर पूर्णतया ध्यान मार्ग पर अपने को केंद्रित कर लिया।

बोधिसत्व को संबोधि-ज्ञान वैशाखी पूर्णिमा की रात को प्राप्त हुआ। उस दिन दोपहर को सुजाता नामक कुलीन युवती ने उन्हें अन्न की भिक्षा दी थी। सुजाता की दी हुई भिक्षा ग्रहण करके बोधिसत्व ने नैरंजना नदी के किनारे भोजन किया और उस रात को वे एक पीपल के पेड़ के नीचे जा बैठे। उस वैशाखी पूर्णिमा की रात को बोधिसत्व को तत्व-बोध हुआ और तब गौतम बोधिसत्व गौतम बुद्ध हो गए। 

बुद्ध को जो तत्व-बोध हुआ है वह है चार आर्यसत्य एवं अष्टांगिक मार्ग। इस ज्ञान का प्रथम उपदेश उन्होंने अपने साथ रहने वाले पांच साथियों को दी। 

गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाखी पूर्णिमा के ही दिन हुआ था। ऐसा अद्भुत संयोग किसी अन्य महापुरुष के साथ घटित नहीं हुआ।

सनातन धर्म और बोद्ध धर्म एन एक बड़ा फर्क यह है कि सनातन धर्म में ब्रह्मचर्य, गृहस्त, वानप्रस्थ और सन्यास का सिलसिला क्रमश रखा गया है। एक आश्रम से आगे बढ़कर दूसरे आश्रम में जाया जाता है और वापस लौटने की इजाजत नहीं होती है। परन्तु बौद्ध धर्म में अलग परंपरा है। यहाँ माता-पिता मानते हैं कि पुत्र के युवा होते ही उसे सर्वश्रेष्ठ भिक्खु-धर्म की दीक्षा देना उनका कर्तव्य है। बाद में यदि अगर पुत्र को अनुभव हो कि वह ऊँची चीज उसके अनुकूल नहीं है तो वह स्वेक्षा से नीचे उतर सकता है। बौद्ध-धर्म में रिवाज है कि भिक्षु-व्रत ग्रहण करने के बाद अगर किसी को गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की इच्छा हो तो वह अपने गुरु की आज्ञा लेकर वैसा कर सकता है। 
                                               .......सादर नमन !

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