गुदड़ी का लाल ~ लाल बहादुर शास्त्री

लालबहादुर शास्त्री जी 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराई में पैदा हुए थे | स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (1904-1966) की जीवन-गाथा एक सामान्य व्यक्ति की असामान्य गाथा है। इस व्यक्ति ने अपने प्रारंभिक जीवन में गरीबी की आग की झुलस को झेलते हुए केवल नैतिक सिद्धान्तों के बल पर असाधारण राजनैतिक ऊँचाई हासिल की। शास्त्री जी अपने पीछे न कोई धन-संपत्ति छोड़ गये, न कोई बैंक-बैलेंस। हाँ, हर तरह के भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले आज के माहौल में राजनीति का चक्कर चलाने वालों के लिए एक मिसाल जरूर कायम कर गये। क्या आज का राजनेता इससे कुछ सीखना चाहेगा।

केवल 19 महीने प्रधानमंत्री रहे शास्त्री जी का कार्यकाल सरगर्मियों से भरा, तेज गतिविधियों का काल था। इस काल के दरम्यान राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अहमियत के कई सामाजिक तथा राजनैतिक मसलों ने सिर उठाया, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध भी शामिल है।आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा . तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुईलालबहादुर शास्त्री जी 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराई में पैदा हुए थे | स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (1904-1966) की जीवन-गाथा एक सामान्य व्यक्ति की असामान्य गाथा है। इस व्यक्ति ने अपने प्रारंभिक जीवन में गरीबी की आग की झुलस को झेलते हुए केवल नैतिक सिद्धान्तों के बल पर असाधारण राजनैतिक ऊँचाई हासिल की। शास्त्री जी अपने पीछे न कोई धन-संपत्ति छोड़ गये, न कोई बैंक-बैलेंस। हाँ, हर तरह के भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले आज के माहौल में राजनीति का चक्कर चलाने वालों के लिए एक मिसाल जरूर कायम कर गये। क्या आज का राजनेता इससे कुछ सीखना चाहेगा।

केवल 19 महीने प्रधानमंत्री रहे शास्त्री जी का कार्यकाल सरगर्मियों से भरा, तेज गतिविधियों का काल था। इस काल के दरम्यान राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अहमियत के कई सामाजिक तथा राजनैतिक मसलों ने सिर उठाया, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध भी शामिल है।आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा . तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुईलालबहादुर शास्त्री जी 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराई में पैदा हुए थे | स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (1904-1966) की जीवन-गाथा एक सामान्य व्यक्ति की असामान्य गाथा है। इस व्यक्ति ने अपने प्रारंभिक जीवन में गरीबी की आग की झुलस को झेलते हुए केवल नैतिक सिद्धान्तों के बल पर असाधारण राजनैतिक ऊँचाई हासिल की। शास्त्री जी अपने पीछे न कोई धन-संपत्ति छोड़ गये, न कोई बैंक-बैलेंस। हाँ, हर तरह के भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले आज के माहौल में राजनीति का चक्कर चलाने वालों के लिए एक मिसाल जरूर कायम कर गये। क्या आज का राजनेता इससे कुछ सीखना चाहेगा।

केवल 19 महीने प्रधानमंत्री रहे शास्त्री जी का कार्यकाल सरगर्मियों से भरा, तेज गतिविधियों का काल था। इस काल के दरम्यान राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अहमियत के कई सामाजिक तथा राजनैतिक मसलों ने सिर उठाया, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध भी शामिल है।आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा . तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुई . क्या हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो दिया .

बचपन से नैतिक सिद्धांतों का पालन करने वाले थे शास्त्री जी
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।

नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।

नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।

मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी। वस्तुत: ईमानदारी महान गुण है। जो व्यक्ति अपने विचार और आचरण में नैतिक सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहता है वही सही अर्थो में बड़ा बनता है

अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखने वाले युगपुरुष
छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।

बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।

उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो। बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया|

भारत के लाल की मौत का रहस्य
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य सुलझने के बजाय और गहरा गया है। अब उनके परिवार के सदस्यों ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में गड़बड़ी हो सकती है।

दिवंगत लालबहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।

दिवंगत शास्त्री के भांजे सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में गड़बड़ी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इनकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि वह ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है।

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है।

उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशियाके लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व: शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में गड़बड़ी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है।

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकत्सीय जांच की एक रिपोर्ट है।

धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नही मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने गड़बड़ी के आरापों की जांच कराई थी।
वैसे आधिकारिक तौर पर 11 जनवरी, 1966 को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से उस समय हुई, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है। क्या हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो दियालालबहादुर शास्त्री जी 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराई में पैदा हुए थे | स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (1904-1966) की जीवन-गाथा एक सामान्य व्यक्ति की असामान्य गाथा है। इस व्यक्ति ने अपने प्रारंभिक जीवन में गरीबी की आग की झुलस को झेलते हुए केवल नैतिक सिद्धान्तों के बल पर असाधारण राजनैतिक ऊँचाई हासिल की। शास्त्री जी अपने पीछे न कोई धन-संपत्ति छोड़ गये, न कोई बैंक-बैलेंस। हाँ, हर तरह के भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले आज के माहौल में राजनीति का चक्कर चलाने वालों के लिए एक मिसाल जरूर कायम कर गये। क्या आज का राजनेता इससे कुछ सीखना चाहेगा।

केवल 19 महीने प्रधानमंत्री रहे शास्त्री जी का कार्यकाल सरगर्मियों से भरा, तेज गतिविधियों का काल था। इस काल के दरम्यान राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अहमियत के कई सामाजिक तथा राजनैतिक मसलों ने सिर उठाया, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध भी शामिल है।आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा . तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुई . क्या हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो दिया .

बचपन से नैतिक सिद्धांतों का पालन करने वाले थे शास्त्री जी
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।

नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।

नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।

मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी। वस्तुत: ईमानदारी महान गुण है। जो व्यक्ति अपने विचार और आचरण में नैतिक सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहता है वही सही अर्थो में बड़ा बनता है

अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखने वाले युगपुरुष
छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।

बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।

उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो। बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया|

भारत के लाल की मौत का रहस्य
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य सुलझने के बजाय और गहरा गया है। अब उनके परिवार के सदस्यों ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में गड़बड़ी हो सकती है।

दिवंगत लालबहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।

दिवंगत शास्त्री के भांजे सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में गड़बड़ी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इनकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि वह ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है।

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है।

उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशियाके लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व: शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में गड़बड़ी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है।

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकत्सीय जांच की एक रिपोर्ट है।

धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नही मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने गड़बड़ी के आरापों की जांच कराई थी।

वैसे आधिकारिक तौर पर 11 जनवरी, 1966 को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से उस समय हुई, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।

बचपन से नैतिक सिद्धांतों का पालन करने वाले थे शास्त्री जी
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।

नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।

नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।

मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी। वस्तुत: ईमानदारी महान गुण है। जो व्यक्ति अपने विचार और आचरण में नैतिक सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहता है वही सही अर्थो में बड़ा बनता है

अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखने वाले युगपुरुष
छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।

बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।

उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो। बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया|

भारत के लाल की मौत का रहस्य
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य सुलझने के बजाय और गहरा गया है। अब उनके परिवार के सदस्यों ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में गड़बड़ी हो सकती है।

दिवंगत लालबहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।

दिवंगत शास्त्री के भांजे सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में गड़बड़ी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इनकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि वह ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है।

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है।

उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशियाके लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व: शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में गड़बड़ी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है।

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकत्सीय जांच की एक रिपोर्ट है।

धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नही मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने गड़बड़ी के आरापों की जांच कराई थी।
वैसे आधिकारिक तौर पर 11 जनवरी, 1966 को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से उस समय हुई, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है। क्या हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो दिया .

बचपन से नैतिक सिद्धांतों का पालन करने वाले थे शास्त्री जी
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।

नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।

नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।

मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी। वस्तुत: ईमानदारी महान गुण है। जो व्यक्ति अपने विचार और आचरण में नैतिक सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहता है वही सही अर्थो में बड़ा बनता है

अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखने वाले युगपुरुष
छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।

बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।

नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।

माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।

उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो। बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया|

भारत के लाल की मौत का रहस्य
पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य सुलझने के बजाय और गहरा गया है। अब उनके परिवार के सदस्यों ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी को यह कहकर नहीं दिए जाने को गंभीरता से लिया है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया जाएगा, तो इसके कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान और देश में गड़बड़ी हो सकती है।

दिवंगत लालबहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने कहा कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री उनके पिता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकप्रिय नेता थे। आज भी वह या उनके परिवार के सदस्य कहीं जाते हैं, तो हमसे उनकी मौत के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। लोगों के दिमाग में उनकी रहस्यमय मौत के बारे में संदेह है, जिसे स्पष्ट कर दिया जाए तो अच्छा ही होगा।

दिवंगत शास्त्री के भांजे सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने देश में गड़बड़ी की आशंका जताकर, जिस तरह से सूचना देने से इनकार किया है, उससे यह मामला और गंभीर हो गया है। उन्होंने कहा कि वह ही नहीं, बल्कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर उनकी मौत का सच क्या है।

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि जिस ताशकंद समझौते के लिए पूर्व प्रधानमंत्री गए थे, उसकी चर्चा तक क्यों नहीं होती है।

उल्लेखनीय है कि सीआईएज आई ऑन साउथ एशियाके लेखक अनुज धर ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सरकार से स्व: शास्त्री की मौत से जुड़ी जानकारी मांगी थी। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर सूचना सार्वजनिक करने से छूट देने की दलील दी है कि अगर दिवंगत शास्त्री की मौत से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक किए गए, तो इस कारण विदेशी रिश्तों को नुकसान, देश में गड़बड़ी और संसदीय विशेषाधिकार का हनन हो सकता है।

सरकार ने यह स्वीकार किया है कि सोवियत संघ में दिवंगत नेता का कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था, लेकिन उसके पास पूर्व प्रधानमंत्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों द्वारा की गई चिकत्सीय जांच की एक रिपोर्ट है।

धर ने प्रधानमंत्री कार्यालय से आरटीआई के तहत यह सूचना भी मांगी है कि क्या दिवंगत शास्त्री की मौत के बारे में भारत को सोवियत संघ से कोई सूचना मिली थी। उनको गृह मंत्रालय से भी मांगी गई ये सूचनाएं अभी तक नही मिली हैं कि क्या भारत ने दिवंगत शास्त्री का पोस्टमार्टम कराया था और क्या सरकार ने गड़बड़ी के आरापों की जांच कराई थी।

वैसे आधिकारिक तौर पर 11 जनवरी, 1966 को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से उस समय हुई, जब वह ताशकंद समझौते के लिए रूस गये थे। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है।

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