तलाक-तलाक-तलाक या समान नागरिक संहिता !!

राहुल(कांग्रेस एवं ......) और अब्दुल laptop पर बैठ के मोदी को जम के कोस रहे थे .....!!
अब्दुल ने लिखा मोदी कौन होता है हमारे मज़हब में दख़ल देने वाला,
हममें तीन तलाक और चार शादी का जो सिस्टम शरीयानुसार जैसा चल रहा है वही चलेगा,
कोर्ट की ऐसी की तैसी ....
लेकिन पोस्ट करने से पहले ही अब्दुल की माँ आ गयी और बोली तू यहाँ बैठा है तुझे कुछ ख़बर भी है....?
तेरे जीजा ने तेरी बहन को तलाक़ देके घर से निकाल दिया है क्यूँकि खाने में नमक ज़्यादा था .....
और इधर तेरे अब्बू भी पगला गए हैं कह रहे हैं दूसरी शादी करेंगे.....
साथ बैठा राहुल सोच रहा था कि अब्दुल अपनी मोदी वाली पोस्ट submit करेगा या delete कर देगा।

आप क्या सोचते हो ????
बीते दिनों ऐसी दो घटनाएं हुई जिनके चलते समान नागरिक संहिता की बहस अचानक तेज हो गई है। पहली, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देते हुए तीन तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को समाप्त करने की बात कही है।
सर्वोच्च न्यायालय में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं पर रोक लगाए जाने के लिए सुनवाई जारी है। यह सुनवाई शायरा बेगम के मामले में चल रही है। इसी मामले में शपथपत्र देते हुए केंद्र सरकार ने इन प्रथाओं को असंवैधानिक बताया है और इन्हें समाप्त करने की बात कही है।

लेकिन इसी बीच एक और घटना भी हुई है जो एक मध्यम-मार्ग की ओर इशारा करती है। तीन तलाक मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक, नूर जहां ने हाल ही में बयान दिया है कि वे समान नागरिक संहिता के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि समान संहिता लागू किये जाने की जगह मुस्लिम पर्सनल लॉ का संहिताकरण (कोडिफिकेशन) किया जाए। वैसे ही जैसे हिन्दू पर्सनल लॉ का किया गया है।

नूर जहां द्वारा उठाई जा रही बात पहले से भी कई लोग उठाते आए हैं। ऐसे कई लोग हैं जिनका मानना है कि भारत जैसे विविधता भरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना लगभग असंभव है। ऐसे में इन लोगों का मानना है कि विभिन्न धर्मों में प्रचलित उन प्रथाओं को समाप्त कर दिया जाए जो किसी के अधिकारों का हनन करती हैं और बाकी नागरिक कानूनों का संहिताकरण कर दिया जाए। इन लोगों के अनुसार, ऐसा करने से प्रचलित कुप्रथाएं भी समाप्त हो जाएंगी और धार्मिक विविधता भी बरकरार रहेगी।

किसी अदालत में तलाक के लिए पेशियों पर चक्कर काट रहे किसी हिन्दू पति से पूछिए तो वह बड़ी दर्दीली आवाज में कहेगा कि काश एक दिन के लिए यह सहूलियत मुझे मिल जाए तो ज़िंदगी का एक भीषण तनाव दूर हो। फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र ने तो हेमामालिनी से शादी करने के लिए इस्लाम कुबूल कर लिया था। यही पीड़ा उस मुस्लिम महिला की भी है जिसे 3 दफा तलाक कहकर मर्द अपनी ज़िंदगी और घर से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकता है, मानो उसका कोई वजूद ही न हो। बी आर चोपड़ा निर्देशित फिल्म “निकाह” की नायिका सलमा आगा हर किसी को इसी वजह से याद है। जरूरत मौजूदा कानूनों की खामियों को सुधारने की है न कि यूनिफ़ार्म सिविल कोड की आड़ में धर्म के ढ़ोल-नगाड़े बजाने और पीटने की।
‘हमारे संविधान निर्माताओं ने ‘वन नेशन, वन कांस्टीट्यूशन’ का सपना देखा था। अगर यूनिफ़ार्म सिविल कोड नहीं लागू होता है तो हम सिर्फ संविधान का ही अपमान नहीं कर रहे, बल्कि संविधान बनाने वालों का भी अपमान कर रहे हैं। अगर बाबा साहेब आंबेडकर, पंडित नेहरू, रफी अहमद किदवई और तमाम संविधान निर्माता सेक्युलर थे तो उन्हीं का बनाया अनुच्छेद 44 कैसे कम्युनल हो जाएगा।’

‘संविधान शुरू से सेक्युलर रहा है। लेकिन जब इसमें सेक्युलरिज्म शब्द भी जोड़ दिया गया, फिर तो ये पर्सनल हो ही नहीं सकता। क्योंकि सेक्युलरिज्म और पर्सनल लॉ एक नदी के दो छोर हैं। साथ-साथ नहीं चल सकते। या तो आपका देश सेक्युलर हो सकता है, या तो धार्मिक हो सकता है। अगर धार्मिक होगा तो पर्सनल लॉ चलेगा। अगर सेक्युलर है तो हमारे पास कॉमन सिविल कोड ही रास्ता है।’

‘समान नागरिक संहिता लागू करने में कोई तकनीकी मुश्किल नहीं है, बल्कि राजनीतिक मुश्किल है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण हुआ है। संविधान राज्य को निर्देश देता है कि समान नागरिक संहिता लागू की जाए। क्यों नहीं लाया जा सका है, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल किया है। यह नहीं लाया गया, इसका कारण वोट बैंक की राजनीति है कि जिन समुदायों के पर्सनल कानून हैं वे कहीं नाराज न हो जाएं।’

हमारे देश में तीन चीजें बहुत जरूरी हैं। यूनीफॉर्म एजुकेशन, यूनीफॉर्म हेल्थकेयर और यूनीफॉर्म सिविल कोड हो। अगर देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना है तो ये तीन चीजें बहुत जरूरी हैं।’

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