राखी के लिए अदैहिक प्रेम की सुंदरता पहचानें !!

आज रक्षा बंधन है। इस त्योहार के दो स्तर हैं। पहला स्तर दुनियावी है। इसमें शुभकामनाओं, आशीष और रक्षा के लिए एक व्यक्ति, दूसरे को राखी बांधता है। लोक जीवन में यह देखने में आता है कि या तो पुरोहित अपने यजमान को राखी बांधते हैं या बहन अपने भाई को बांधती है।
          राखी बांधते समय बहन पहले अपने भाई के ललाट पर तिलक लगाती है। फिर भाई का मुख मीठा कराती है अर्थात कुछ मिठा खिलाती है। इसके बाद उसकी कलाई पर राखी का सूत बांधती है। यह बहन-भाई के निस्वार्थ प्यार का प्रतीक है।
          पुरोहित भी इसी तरह राखी बांधते हैं। रक्षा सूत्र बांधते समय वे मंत्र पाठ करते हैं, जिसके दो उद्देश्य होते हैं -बांधे जा रहे सूत्र को अभिमंत्रित करना और अपने यजमान को आशीर्वाद देना। ऐसा मानते हैं कि बहन अपने भाई को जो राखी बांधती है, उसका प्रतीकात्मक महत्व है। तिलक लगाते समय बहन-भाई को याद दिलाती है कि आत्मा के रूप में हम एक समान हैं। तुम्हारे ललाट पर यह आत्म-स्मृति का तिलक है, क्योंकि आत्मा का स्थान भृकुटी के बीच में माना गया है। तुम्हारे मुख से सदैव मीठे बोल निकलें। कलाई पर राखी बांधने का संदेश यह है कि तुम्हारे भीतर जो भी बुराईयां हैं, उन्हें बांधो। मन और इंद्रियों पर इस राखी की तरह संयम का बंधन रखो।
          राखी बांधते समय बहन अपने भाई को इन बातों की याद दिलाती है, क्योंकि इन आध्यात्मिक रहस्यों में सत्यता व पवित्रता का बल समाया हुआ है। इस उद्देश्य ने इतिहास और हमारे लोक जीवन में अनेक कहानियों को जन्म दिया। द्रोपदी ने अपनी लाज की रक्षा के लिए कृष्ण को पुकारा था। और रानी कर्णावती की राखी के एवज में हुमायूं ने उसकी रक्षा की थी। इंद्राणी ने इंद्र को राखी बांधी थी और उससे इंद्र को विजय प्राप्त हुई थी।
          लेकिन भाई-बहन के बीच के रक्षा बंधन का एक और आध्यात्मिक पक्ष है, जिसका संबंध धार्मिक प्रतीकों से नहीं, बल्कि मानव मनोविज्ञान और हमारी चेतना से है। एक स्त्री है, एक पुरुष है। दोनों एक-दूसरे से सहज भाव से ही आकर्षित होते हैं। यह आकर्षण प्राकृतिक है। दोनों एक-दूसरे के सान्निध्य का सुख हर स्तर पर प्राप्त करते हैं। तो क्या हम इसे देह के परे भी महसूस कर सकते हैं?
          स्त्री के लिए पुरुष के दो रूप हैं- पिता और पुत्र। पुरुष के लिए दैहिकता से परे स्त्री के दो रूप और हैं -मां और बेटी। बेटी से वह खेलता है, उसे खेलाता है, जीवन भर उसके हित के लिए उद्यम करता है। मां से वह जीवन ही नहीं, अपने बचपन के भी सारे सुख पाता है। उम्र के अंतर और अपने रक्त संबंध के कारण इन दोनों से मिलने वाले आत्मिक और अदैहिक सुख की महानता वह पहचान लेता है।
          लेकिन स्त्री-पुरुष के बीच एक तीसरा संबंध भी है- बराबरी का संबंध। लगभग एक ही उम्र के, एक ही माहौल में पले-बढ़े, एक ही तरह की परंपरा और आदर्शों के अनुयायी। साथ खेले, साथ-साथ सोचा। एक ही तरह की बात से खुशी मिली, एक ही तरह की बात से दुखी हुए। लेकिन एक स्त्री है, दूसरा पुरुष। पति-पत्नी को भी एक-दूसरे के इतना निकट आने में बहुत लंबा समय लगता है। पर दोनों के बीच का जो अदैहिक संबंध है, वह भाई-बहन का संबंध है।
          आम तौर पर पुरुष, समवयस्क स्त्री के साथ अपने अदैहिक संबंध की सुंदरता को नहीं पहचान पाता। बहन को वह सिर्फ रक्त संबंधों के स्थूल कारणों के आधार पर ही अलग करता है। लेकिन रक्षाबंधन के दिन जब बहन राखी बांधती है, तो वह अपने भाई को इस संबंध के उस दिव्य सौंदर्य की याद दिलाती है। पुरुष उस राखी का सच्चा अधिकारी तभी हो सकता है, जब अपनी चेतना के उस स्तर तक पहुंच सके जहां इस अशरीरी प्रेम का सौंदर्य आह्लादित करता है।

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