बिहार का ‘कोहिनूर’~ जो तराशा न जा सका !!
बाबु वशिष्ठ नारायण सिंह उर्फ वैज्ञानिक जी
डा. वशिष्ट नारायण सिंह का जन्म 2 अप्रैल 1942 को बिहार राज्य के भोजपुर जिले के ग्राम बसन्तपुर में एक साधारण सिपाही के घर में हुआ
था। ग्राम बसन्तपुर आरा से करीब 22 कि.मी उत्तर-पश्चिम
में अवस्थित है। इन्होने अपनी प्रारम्भिक
शिक्षा अपने गाँव में प्राप्त की। उसके बाद इनका दाखिला
नेतरहाट में हुआ, जहाँ से ये उच्चतर माध्यमिक बोर्ड, बिहार में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए पास किये। साइंस
कॉलेज, पटना में B.Sc.(Hons) प्रथम वर्ष में ही इनकी
प्रतिभा को देखते हुए पटना विश्वविद्यालय ने इन्हें तीनों वर्षों की परीक्षा एक
साथ प्रथम वर्ष में ही देने की छूट दे दी थी, और उन्होंने अकेडमी के सारे पुराने मापदंडों को
ध्वस्त कर दिया था। तब तक वशिष्ट नारायण अपने सहपाठियों और गुरुओं के बीच गणित के कठिन
प्रश्न को कई तरीकों से हल करने के लिये मशहूर हो चुके थे।
उसके कुछ ही महीने बाद विश्वविद्यालय के Patna College of Engineering में गणित सम्मलेन का आयोजन किया गया था। उस सम्मलेन में विश्व प्रसिद्द गणितज्ञ डा. जॉन एल
केली अमेरिका के कलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से पधारे थे। आयोजकों ने वशिष्ट नारायण का परिचय डा. केली से कराया।
उन्होंने वशिष्ट नारायण को कई कठिन प्रश्न हल करने को दिया। वशिष्ट नारायण की
प्रतिभा से डा. केली बहुत प्रभावित हुए और तत्काल बर्कले आकर आगे की पढ़ाई का
निमंत्रण दे दिया। वशिष्ट नारायण ने अर्थाभाव के कारण बर्कले जाने में अपनी
असमर्थता जतायी। डा.केली ने उनका सारा खर्च वहन करने का भरोसा दिलाया।
पटना विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके स्नातक डिग्री लेने के बाद उनका
पासपोर्ट/वीसा बनवाकर उन्हें डा.केली के पास कलिफ़ोर्निया भेजवा दिया। डा.केली ने
भी अपना वादा निभाया और अपने मार्गदर्शन में रिसर्च कराया। वशिष्ट नारायण ने भी
पूरे लगन और मेह्नत के साथ रिसर्च कर Ph. D की डिग्री प्राप्त कर उस ज़माने का एक कीर्तिमान स्थापित
किया। कम उम्र में एक अति कठिन Topics "Reproducing
Kernels and Operators with a Cyclic Vectot" पर 1969 में Ph.
D प्राप्त कर लेने के कारण वे अमेरिका में भी मशहूर हो
गये।
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को प्रतिष्ठित NASA में एसोसिएट साइंटिस्ट प्रोफेसर के पद पर बहाल हुए, जो किसी के लिए भी एक सपना होता है। परंतु कुछ ही महीनों में उन्हें
राष्ट्र-प्रेम सताने लगा और वे 1972 में भारत लौट आये। जबकि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका उन्हें अपनी
नागरिकता प्रदान करना चाह रही थी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। घर लौटने पर पूरे इलाके में उनका
शानदार स्वागत हुआ। उनके माता-पिता की प्रतिष्ठा आसमान पर पँहुच गयी। भारत लौटने पर इनकी नौकरी पहले भारतीय प्रद्योगिकी
संस्थान(IIT)
कानपुर,बंबई और बाद में भारतीय सांख्यिकी संस्थान,कलकत्ता में लगी।
एक तो वशिष्ट नारायण बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि के थे और इसके
विपरीत उनका विवाह वंदना
रानी सिंह से 1973 में एक संभ्रांत परिवार में हो गया। वे खान-पान और रहन-सहन तथा
विचार से भी साधारण थे और संयुक्त परिवार के समर्थक थे। इसके विपरीत उनकी पत्नी आधुनिक
और एकल परिवार विचार-धारा में विश्वास रखती थी। यही वह समय था जब वशिष्ठ नारायण
असामान्य व्यवहार करने लगे थे।
वशिष्ठ नारायण सिंह की भाभी प्रभावती जी बतलाती हैं कि “छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा हो जाना, पूरा घर
सर पर उठा लेना, कमरा बंद करके दिन-दिन भर पढते रहना, रात भर जागना उनके व्यवहार
में शामिल था”। जल्दी ही कुल मिलाकर यह शादी बेमेल साबित हो गयी और तलाक़ का
नौबत आ गया। तलाक़ की प्रक्रिया में
वशिष्ट इतने प्रताड़ित और अपमानित हुए कि वे पागल हो गये। अपने समूह से कट जाना भी उनके पागलपन का एक महत्वपूर्ण कारण
बना। 1974 में उन्हें पहली बार सिजिफ्रेनिया नामक बिमारी
ने उनके मस्तिष्क पर प्रहार किया जिसके परिणामस्वरूप 1977 आते-आते उनकी नौकरी छूट गयी और उन्हें
राँची के मानसिक आरोग्यशाला, कांके में भर्ती होना पड़ा।
बेहतर इलाज के क्रम में अपने छोटे
भाई अयोध्या सिंह के साथ 1986 में पुणे जाने के क्रम में वह बीच रास्ते में एक
बड़े स्टेशन पर उतर कर लापता हो गये। काफी प्रयास के बाद भी नहीं
मिले। सन 1992 में बसन्तपुर का नजदीकी बाज़ार गंगा पार डुमरी, जिला छपरा पड़ता है, वहां उनके नजदीक गावँ के दो युवकों ने
किसी होटल में जूठे प्लेट धोते हुए देख कर पहचानते हुए कहा ‘अरे इ त बसीठ काका
बाड़न’; जिसकी पुष्टि लगभग दूसरे लड़के ने भी की। किसी तरह उनपर निगरानी रखते हुए
लड़कों ने स्थानीय थाना को सूचना दिया। यह सूचना तेजी से फैलते हुए जिलाधीश के
मार्फ़त मुख्य मन्त्री श्री लालू प्र. यादव तक पहुँच गयी। लालू यादव ने वशिष्ट
बाबू को तत्काल पटना बुला लिया।
मुख्य मन्त्री आवास पर उनका अच्छा
स्वागत हुआ और स्नान कराकर उन्हें नया कपड़ा पहनाया गया। मुख्य मन्त्री वशिष्ट
बाबू से बोले - "आउर का दीं?" तब
वशिष्ट बाबू ने
जवाब दिया- "तोहरा पासे का हवे कि हमरा के देबअ, चार आना पइसा दअ"। सभी लोग आवक। उसके बाद वशिष्ट बाबू को उनके
पैतृक आवास ग्राम बसन्तपुर पँहुचा दिया गया। उनके छोटे भाई अयोध्या सिंह बताते हैं
कि जब भी वे वशिष्ठ बाबु से 1986 से 1992 के गुमनामी काल के बारे में पूछते हैं तो
उनका एक ही उत्तर होता है "छोड़अ ई सब ना पूछे के"। अब उनसे इस बारे में
कोई सवाल नहीं करता है।
गणित के क्षेत्र में
वशिष्ठ नारायण सिंह को कोई भगवान समझता था तो कोई जादूगर। इन्होंने इस क्षेत्र में
कई ऐसे सिद्धांत का आविष्कार किया है जो आज भी प्रचलित है। एक वक्त वह भी था जब
इन्होंने आइंस्टिन के सिद्धांत E= MC2 को चैलेंज कर दिया
था। इनके इस चैलेंज से सभी गणितज्ञ हैरत में पड़ गए थे। तो अपने आप मे गणित के
महारथी कहलाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह ने मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाने
वाला गौस की थ्योरी को भी चैलेंज कर दिया था। इन सभी को चैलेंज करते हुए
उन्होंने अपने हिसाब से सिद्ध कर सभी के सामने दिखाया। जिसका आज भी देश विदेश के
बच्चे अध्ययन करते हैं। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि अपोलो मिशन के
दौरान वो नासा में मौजूद थे तभी गिनती करने वाले कंप्यूटर में अचानक खराबी आ गई।
खराबी की वजह से सभी कंप्यूटर कर्मी मैकेनिक का इंतजार करते हुए काम बंद कर दिया
था। तो उन्होंने अंगुलियों पर ही सारे आकड़े गिन ली। वहीं जब कंप्यूटर सही हुआ तो
इनके द्वारा जोड़ो हुए आंकड़े बिल्कुल सही साबित हुए थे।
एक कृशकाय वृद्ध, जो
आज भी हाथ में पेन लिए घर के चारों ओर भटकता रहता है कभी आपस में ही बातें करते
हुए खुश होता है तो कभी अपने आप पर ही नाराज होते हुए गालियां देता है। तो घर की
चारदीवारी से लेकर अखबार कॉपी यहां तक कि जमीन पर भी कुछ लिखता रहता है। यह सब
बातें देखकर उनके परिजनों की आंखें छलक जाती हैं। कभी वैज्ञानिक जी के नाम से
मशहूर व्यक्ति आज न जाने किन कर्मों की सजा काट रहा है।दुखद पहलु यह है कि वशिष्ठ
नारायण के साथ ही गणित के न जाने कितने रहस्य विलोपित हो गए।
चलते चलते~
1. वशिष्ठ नारायण सिंह सबसे कम उम्र में स्नातकोत्तर(P.G) करने वाले प्रथम भारतीय थे।
2. चाय पिने के पश्चात जब वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपने भाई से बोले, तनी खैनी खिलाव; मैंने उनसे कहा कि खैनी ठीक चीज नइखे, सर। उन्होंने तपाक से कहा - नो, खैनी इस नॉट इन्जुरियस टू हेल्थ, इट इज बुद्धिवर्धक चूर्ण, इसके बाद वो ठठाकर हंसने लगे।
2. चाय पिने के पश्चात जब वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपने भाई से बोले, तनी खैनी खिलाव; मैंने उनसे कहा कि खैनी ठीक चीज नइखे, सर। उन्होंने तपाक से कहा - नो, खैनी इस नॉट इन्जुरियस टू हेल्थ, इट इज बुद्धिवर्धक चूर्ण, इसके बाद वो ठठाकर हंसने लगे।
3. वशिष्ठ नारायण सिंह जी का स्वदेश प्रेम के बारे में क्या धारणा थी यह उनके द्वारा लिखित अपने मित्र के पत्र से पता चलता है।
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