जन्म दिन
जीवन और वक्त
यंत्रवत् चलते रहते है... वसंत, पतझर,
शिशिर.... हम चाहें या न चाहें, वक्त हो या न
हो हमारे पास, मन के दरवाजे थपथपाते... अंतस गुदगुदाते तो
कभी बर्फीली हवाओं में अकेला ही छोड़ जाते। हंसाते...रुलाते...उन्मादित और आलोकित
करते ... प्यार से सरोबार करते तो कभी विरह और अवहेलना की पीड़ा और तिरस्कार के
दंश भी दे जाते, वक्त की शाख पे अनायास ही खिल आए, ये चन्द निर्णायक पल, जो कभी-कभी तो सोचने का
क्या...जीने तक का पूरा तरीका बदल देते हैं। आदमी को बदल देते हैं।
‘पल’ जिनके बारे में गुलजार साहब ने लिखा है कि ‘वक्त की शाख से लमहे नहीं तोड़ा करते’। ओस की बूंदों से...पंखुरियों से नाजुक ये पल...
इन्हें तो बस स्मृति में ही संजोया जा सकता है। पल जो तस्वीर से फ्रेम में सजकर मन
की दीवार पर लटक जाते हैं... जीवन की गड़ती-चुभती कीलों के साथ आखिरी सांस तक साथ-साथ
चलते हैं।
हवाओं में इसी प्रतिक्षित गुलाबी
मौसम की आहट एक बार फिर से सुनाई देने लगी है; अंकुर अंकुर फूटते पेड़ फल-फूलों के लिए तैयार हो चुके हैं। एक बार फिर यह
वही वक्त आ गया है जिसमें पंछी तक नीड़ बनाने के लिए तिनके एकत्रित करने लग जाते
हैं अदम्य साहस के साथ ...न जाने कौन सी हवा सब कुछ बिखेर देगी ...कौन सी बौछार भिगोएगी......
या सरोबार करने की बजाय संग-संग सब कुछ बहा ले जाएगी, परवाह
किए बगैर।
न
मेरे हाँथों में लगाम है, न पावों में रकाब
और उम्र का घोडा तेज-तेज दौड़ रहा है।
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