अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री 'फिरोजा' भी सती हुई थी वीरमदेव के लिए !!
उन पढ़े लिखे एवं जिम्मेवार
लोगों की बुद्धि पर तरस आ रही है जो यह प्रमाण खोज खोज कर इतिहास के पन्नों से
ढूंढ कर ला रहे हैं कि किस मुगल शासक की शादी किस हिन्दू महिला से हुई थी, खासकर क्षत्रिय कुल
की महिला की। विडम्बना तो यह है कि
इस समूचे अभियान में सिर्फ हिन्दू वामपंथी विचारधारा के लोग सक्रीय हैं।
ये नए नवेले व्याख्याकार कभी उन तथ्यों पर गौर नही फरमा रहे हैं कि न जाने किन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों में यह वैवाहिक संबंध बनाये गए होंगे। मेरा आग्रह है उनसे की जो लोग मुग़ल बादशाह की हिन्दू रानिओं
की चर्चा आज कल कर रहे हैं उन्हें मुग़ल बादशाह की भी चर्चा अवश्य करनी चाहिए जिनकी
संताने न सिर्फ राजपूत राजाओं से विवाह ही की बल्कि कुछ मुग़ल कन्याओं ने तो शादी न
सकने की स्थिति में लगभग सती प्रथा की तरह अपने प्राणों का अंत भी किया था।
बहुत सारे पन्ने उन किरदारों से रंगे पड़े हैं जिन्होंने मुगल बादशाहों के किले में मंदिर तक बनवा दिया था, बादशाहों के नाकों से चना चबवा दिया था।
तकलीफ तब होती है जब हमकिसी विषय के एक पक्ष
की बात करते हैं समर्थन अथवा विरोध में। वे लोग, जो इतिहास के गंभीर छात्र रहे
होंगे अथवा जिन्हें संस्कृति एवं इतिहास में रूचि रही होगी शायद वे लोग अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा की प्रेम कहानी को नहीं भूले होंगे। विडंबना तो देखिए कि जिस जौहर प्रथा और सती प्रथा को मजाक उड़ाया जा रहा है ठीक उसी वक्त के इतिहास में एक ऐसा किस्सा
दर्ज है जिसने अलाउद्दीन खिलजी की रातों की नींद उड़ा दी थी।
अलाउद्दीन खिलजी को भारत के
सबसे क्रूर और नृशंस मुस्लिम हमलावरों में से एक माना जाता है जिसने भारत के कई
राज्यों में न केवल लूटपाट और नरसंहार किये बल्कि कई मंदिरों को ध्वस्त किया।
अलाउद्दीन का सबसे अधिक नृशंस अभियान गुजरात का माना जाता है जिसमे उसने सोमनाथ को
लूटकर सोमनाथ का मंदिर ध्वस्त कर दिया था।
लेकिन अलाउद्दीन की रातों की
नींद तब गायब हुई जब उसे पता चला की उसकी बेटी फिरोजा एक राजपूत योद्धा महाराज
कान्हड़ देव के पुत्र वीरमदेव से प्रेम करती है इसलिए अलाउद्दीन ने कान्हड़ देव के
राज्य को नष्ट करने की योजना बनाई।
राजा कान्हड़ देव के पुत्र वीरमदेव को दिल्ली के दरबार में देखकर
खिलजी की पुत्री फिरोजा उन पर फ़िदा हो गयी और उन्हें प्रेम करने लग गयी। राजकुमारी
फिरोजा वीरमदेव पर इस कदर फ़िदा हो गयी थी की वो मन ही मन उन्हें अपना पति मानने लग
गयी। वीरमदेव तब दिल्ली के दरबार में प्रायः जाया करते थे। एक दिन फिरोजा
ने वीरमदेव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। पर वीरमदेव एक राजपूत थे और फिरोजा
मुसलमान उसके बावजूद शहजादी ने किसी भी कीमत पर विरमदेव से विवाह करने तथा अपनाने
कि जिद पकड ली।
शहजादी ने कहा “वर वरुँ तो विरमदेव, ना तो रहुँगी अकन कूँवारी” शहजादी का हठ सुनकर
दिल्ली दरबार मे कौहराम मच गया काफी सोच विचार के बाद अपना राजनैतिक फायदा देख
बादशाह खिलजी इसके लिए तैयार हुआ शादी का प्रस्ताव जालोर दुर्ग पहुँचाया गया।
परन्तु वीरमदेव ने यह कहते हुए
प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया कि, “मामा लाजै भाटिया, कुल लाजै चौह्वान, जौ मै परणुँ तुरकणी तो पश्चिम उगे भान” अर्थात मेरे मामा भाटी वंश से है और मैं खुद चौहान, एक तुर्कन से कैसे शादी करू मेरा वंश अपवित्र हो जायेगा। ऐसा तभी संभव है जब सूरज पश्चिम से उगेगा। यह सुनते ही खिलजी आगबबूला हो गया और उसने दिल्ली पहुँचते ही जालोर के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
खिलजी का जालोर पर आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी ने
दिल्ली लौटते ही एक विशाल सेना लेकर जालोर के किले की घेराबंदी कर दी। अलाउद्दीन
इससे पहले सोमनाथ के युद्ध के बाद जालोर से हार चूका था तब उसे सोमनाथ मंदिर की
लुट का माल और शिवलिंग वापिस देना पड़ा था इसलिए उसने इस युद्ध मे जालोर के राजा
कान्हड़ देव से बदला लेने की ठान ली।
एक वर्ष तक खिलजी की सेना जालोर को घेर कर
बैठी रही पर असफल रही तो अलाउद्दीन ने एकदहिया राजपूत को लालच देकर किले में घुसने
का षड्यंत्र रचा। किले में गुप्त मार्ग से सेना घुसने लगी तो राजपूतो ने भी सामने
आ कर साकका(रणभूमि में बलिदान)करने का मन बना लिया।
खिलजी की एक लाख की फ़ौज के सामने 22
वर्षीय वीरमदेव के नेतृत्व में 15 हजार राजपूत युद्धभूमि में
कूद पड़े और पूरी शक्ति से लड़ते रहे पर अंत में वे हार गए और वीरमदेव को पकड़ कर
उसका सिर काट दिया।
उसका सिर थाली में रखकर जब
फिरोजा के सामने रखा गया तो फिरोजा ने उससे फिर विवाह का प्रस्ताव रखा तो सिर अपने
आप थाली से पलट गया। शहजादी अपने प्रण पर अडिग थी इसलिए वो वीरमदेव का सिर लेकर
यमुना में कूद कर सती हो गयी। एक तुर्क मुस्लिम राजकुमारी एक हिन्दू राजकुमार के लिए
इतनी पागल थी की उसने यमुना में कूद कर अपनी जान दे दी और वीरमदेव के साथ सती हो
गयी...... ।
मैं मान रहा
हूँ कि ऐतिहासिक तथ्यों को
न झुठलाया जा सकता
है न ही इससे मुँह
फेरा जा सकता है इसका अर्थ
यह कदाचित भी नहीं हो सकता है कि उन तथ्यों को अनावश्यक फिर से जीवित किया जाये जो
इतिहास के पन्नों में कहीं विलुप्तप्राय हो चुके हैं। सत्य तो सत्य है इसे कोई इनकार
भी नहीं कर सकता क्यूंकि ये सभी एक एतिहासिक दस्तावेज हैं।
यह सारी कवायद इसलिए कि उन्हें मात्र अपना समर्थन
दर्ज कराना है इस फ़िल्म के प्रति। उन्हें ऐतिहासिक तथ्यों से कोई लेना देना नही है उन्हें सिर्फ अपने वामपंथी विचारधारा को सिद्ध करना मात्र है।
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