मेले हैं चिरागों के - रंगीन दिवाली है !!
दियों की रोशनी और पटाखों की आवाज… क्या है इनका राज?
दिवाली पूरे भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती रही है। रोशनी और पटाखे इसके अभिन्न अंग रहे हैं, भारतीय संस्कृति में एक समय ऐसा भी था जब साल का हरेक दिन एक उत्सव होता था, यानि साल में 365 त्यौहार।
इसका मकसद यह नहीं है कि सिर्फ एक दिन मौज-मस्ती की, फिर सब कुछ खत्म। हमारे भीतर हर दिन ऐसा ही होना चाहिए। इसका मकसद यह था कि हमारा पूरा जीवन ही एक उत्सव बन जाए। दुर्भाग्य से हमारे चलने-फिरने में, हमारे दफ्तर जाने में या जीवन के छोटे-मोटे कामों के दौरान उत्साह नहीं दिखता। इसलिए ये त्यौहार एक बहाना है हमारे जीवने में उत्साह लाने का, उमंग लाने का, उत्सव लाने का।
दिवाली का मकसद भी जश्न के उसी पहलू को आपके जीवन में लाना है। लोग इसी वजह से पटाखे चलाते हैं ताकि उनके अंदर थोड़ी आग जल सके, थोड़ी जिवंतता आ सके। इसका मकसद यह नहीं है कि सिर्फ एक दिन मौज-मस्ती की, फिर सब कुछ खत्म। हमारे भीतर हर दिन ऐसा ही होना चाहिए। अगर हम सिर्फ बैठे भी हों, तो हमारी जीवन ऊर्जा, दिल, दिमाग और शरीर एक पटाखे की तरह फूटते रहें, रोशन होते रहें। अगर हम अपने भीतर से एक सीले हुए पटाखे की तरह हैं, तो हमें रोजाना किसी बाहरी पटाखे की जरूरत पड़ेगी।
दिवाली रोशनी का त्यौहार है। हम देखते हैं कि दिवाली पर हर शहर और गांव हजारों दीयों की रोशनी में जगमगा रहा होता है। मगर यह सिर्फ बाहर दीये जलाने का उत्सव नहीं है, हमलोगों को अपने अंदर रोशनी लानी होगी। रोशनी का मतलब है, स्पष्टता। स्पष्टता के बिना हमारा कोई भी गुण हमारे लिए वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप बन सकता है। जैसे स्पष्टता के बिना आत्मविश्वास बहुत घातक होता है। आज दुनिया में बहुत सारा काम स्पष्टता के बिना किया जा रहा है।
मगर यह सिर्फ बाहर दीये जलाने का उत्सव नहीं है, हमको अपने अंदर रोशनी लानी होगी। रोशनी का मतलब है, स्पष्टता। जरूरी स्पष्टता के बगैर हम जो भी करने की कोशिश करेंगे, वह अनर्थ ही होगा। रोशनी सिर्फ भौतिक अर्थों में ही स्पष्टता नहीं लाती है, बल्कि अपनी दृष्टि में भी स्पष्टता लाती है। हम कितनी स्पष्टता से जिंदगी को देखते हैं और अपने आस-पास की हरेक चीज का अनुभव करते हैं, इसी से यह तय होगा कि हम अपनी जिंदगी को कितनी समझदारी से चलाएंगे। दिवाली के दिन अंधेरे का या कहें कि स्याह-शक्तियों का नाश हुआ और रोशनी हुई। मानव जीवन का भी यही हाल है – दुख और निराशा के माहौल में चिंता के बादल इंसान के मन को घेर लेते हैं और वह यह नहीं समझ पाता कि ये बादल सूर्य को ढंकने की कोशिश कर रहे हैं। उसे रोशनी कहीं और से लाने की जरूरत नहीं है। अगर वह सिर्फ अपने अंदर जमा काले बादलों को हटा दे, तो रोशनी अपने आप आ जाएगी। रोशनी का त्यौहार बस इसी बात की याद दिलाता है।
दीपावली की अनंत ज्योति भरी शुभकामनाएं।
Comments
Post a Comment