निजता:~ अधिकार और सुरक्षा की नयी लडाई !!



 देश की सर्वोच्च न्यायलय की संवैधानिक खंडपीठ ने सर्वसम्मति से 1954 के ‘एमपी शर्मा बनाम सतीश चंद्र’ एव 1963 के ‘खरक सिंह बनाम उत्तर प्रदेश’ के निर्णय को ख़ारिज करते हुए यह ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा है कि ‘निजता का अधिकार’(Right to Privacy) संविधान के अनुच्छेद 21(जीने का अधिकार) के तहत संरक्षित है और यह प्राकृतिक प्रदत अधिकार है।परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि निजता का अधिकार, “मूल अधिकार” नहीं है।
          सर्वोच्च न्यायलय ने भारत सरकार के अटोर्नी जेनरल के इस दलील को सिरे से ख़ारिज कर दिया कि “निजता एक मौलिक अधिकार नहीं है”। इस फैसले का निश्चित ही दूरगामी प्रभाव भारत सरकार की नीतियों पर पड़ेगी विशेषकर ‘डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक’ जिसका मसौदा बन कर तैयार है संसद में पेश किये जाने के लिए एवं दूसरी सबसे महत्वपूर्ण परियोजना ‘आधार’, जिसके तहत सामान्य व्यक्ति के हर क्रिया-कलाप पर सरकार की पैनी दृष्टि रखने की तैयारी को गहरी चोट लगी है। आधार पर निर्णायक फैसला अभी आना शेष है लेकिन इस फैसले का प्रभाव निश्चित ही सरकार के आधार परियोजना पर पड़ेगी।
          आधार कार्ड की वजह से देश के करोड़ों लोगों की निजता खतरे में है। आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया में अपनाई जाने वाली वैज्ञानिक तकनीक से देश की ज्यादातर आबादी बिल्कुल बेखबर है। आधार कार्ड का पूरा डाटाबेस कभी भी कोई भी अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकता है या उसकी जानकारी किसी भी प्लेटफार्म पर लीक कर सकता है। क्या आधार कार्ड से लोगों की निजता का उल्लंघन होगा यह सवाल बार-बार किया जा रहा है। एक ओर जहां आधार कार्ड जटिल कानूनों में उलझा हुआ है, वहीं निगरानी और निजता को लेकर इस पर विवाद शुरू हो गया है। आधार कार्ड वह प्रामाणिक आधार बन सकता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में दोहरा और फर्जी लाभ लेने वालों पर अंकुश लगे और सरकारी खजाने पर सेंधमारी भी रुके, लेकिन सर्वोच्च न्यायलय का कहना है कि यह निजता पर खतरा कैसे नहीं है, सरकार इसे स्पष्ट करे कि आधार परियोजना का सवाल इतना जरूरी क्यों है?
          यह समझने के लिए हमें पहले ये जानना होगा कि आधार परियोजना और निजता के अधिकार का आपस में क्या संबंध है। इस परियोजना के तहत अलग-अलग निजी और सरकारी डेटाबेस; रेलवे यात्रा, वोटर आईडीकार्ड, पैन कार्ड, बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर और पीडीएस आदि में हर व्यक्ति का आधार नंबर जोड़ने का प्रस्ताव है। जब ये काम पूरा हो जाएगा, तो किसी व्यक्ति का प्रोफ़ाइल तैयार करना काफ़ी आसान हो जाएगा। उस व्यक्ति ने कब और कैसे यात्रा की, किसे फ़ोन किया, किसके साथ पैसे की लेन-देन किया। ये जानकारियां पाना किसी के लिए बहुत आसान हो जाएगा। यानी आधार परियोजना आम लोगों की निगरानी करने का सबसे बड़ा तरीका बन सकती है। निगरानी और निजता का मुद्दा आपस में जुड़ा हुआ है। चिंताजनक बात ये है कि भारत में निजता संबंधी कोई भी कानून अभी तक नहीं है। यानी आधार परियोजना एक तरह के क़ानूनी निर्वात या वैक्युम में काम कर रही है। आधार का इस्तेमाल किस लिए हो सकता है। इससे जुड़ी जानकारी कौन और किन परिस्थितियों में मांग सकता है। इन सवालों को लेकर नियम या दिशा-निर्देश नहीं हैं।
          महेंद्र सिंह धोनी की निजी जानकारी आधार कार्ड बनाने वाली एजेंसी ने सोशल नेटवर्किंग साइट पर लीक कर दी। आधार कार्ड से जुड़ी जानकारी यहां तक कि आवेदन फार्म तक को सार्वजनिक कर दिया गया। जानकारी लीक होने पर क्रिकेटर की पत्नी ने ट्वीट करके सरकार से इसकी शिकायत की कि क्या किसी तरह की प्राइवेसी बची है।
चूंकि कल तक(23-08-17) निजता एक संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं था, इसलिए किसी के आने-जाने पर नजर रखना, जिससे निजता में अतिक्रमण होता हो, मौलिक अधिकारों का हनन नहीं था। न्यायमूर्ति सुब्बा राव ने स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया था कि व्यक्तिगत आजादी के अधिकार का अर्थ केवल घूमने-फिरने की आजादी नहीं है, बल्कि निजी जीवन में भी घुसपैठ से स्वतंत्रता है। भले ही मौलिक अधिकारों में निजता को शामिल नहीं किया गया हो, पर यह व्यक्तिगत आजादी का अभिन्न अंग है। भारतीय दंड विधान(IPC) की धारा 509 के अनुसार किसी स्त्री की निजता में घुसपैठ अपराध है।
          न्यायमूर्ति ए पी शाह ने 2007 में स्पष्ट रूप से अनुशंसा की है कि ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले निजता के अधिकार का एक मजबूत कानून बनना चाहिए।
          क्यूंकि संवेदनशील आंकड़ों का दुरुपयोग भी संभव है। एडवर्ड स्नोडेन द्वारा किये गये खुलासे से जाहिर है कि निजी अधिकारियों के पास जो संवेदनशील गोपनीय सूचनाएं होती हैं, वे अन्य के साथ साझा की जाती हैं। ‘आधार’ को लेकर भी काफी आशंकाएं हैं। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि संवेदनशील आंकड़े व जानकारियां सुरक्षित रहें। अमेरिका में 1974 का निजता कानून ऐसे किसी दुरुपयोग के खिलाफ एक सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें संबद्ध व्यक्ति को भी अधिकार है कि वह अपने बारे में एकत्र आंकड़े को देख सके। प्रौद्यौगिकी का लाभ उठाना वक्त की जरूरत है, किंतु संतुलन बनाना अनिवार्य है, ताकि उससे किसी की निजता प्रभावित न हो।

अब जब निजता को मौलिक अधिकार के रूप में संवैधानिक दर्जा मिल गया है, तब इसके उल्लंघन का दायरा तय होना चाहिए क्यूंकि निजता का अधिकार निरंकुश नहीं हो सकता है। निजता के अधिकार के तहत हमारा कोई भी व्यवहार किसी क़ानून और देशहित के ख़िलाफ़ नहीं हो सकता है। जिस तरह निजता की आड़ में हमारी ग़ैरक़ानूनी हरक़तें नज़रअन्दाज़ नहीं की जा सकतीं उसी प्रकार देशहित के बावजूद सरकार को निजता में किसी भी सीमा तक दख़ल देने की इजाज़त भी नहीं दी जा सकती।

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