मन की बात:~ हिन्दू धर्म नहीं एक संस्कृति है !!

सत्ता के शिखर बैठा हुआ एक वरिष्ठ नौकरशाह जब सिर्फ इन वजहों से अपने को असुरक्षित महसूस करता है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय से आता है तब बेमानी सी लगने लगती है आजादी के मायने, जिसे पाने के लिए असंख्य लोगों ने अपनी शहादत दे दी इस मुल्क के लिए।
यह गम्भीरतापूर्ण विवेचना की विषय-वस्तु है कि क्या सचमुच भारत के मुसलमान डर और भय के माहौल में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं? क्या वाकई इस्लाम इस मुल्क में खतरे में पड गयी है। क्या हिन्दू वाकई विगत ७० वर्षों में आततायी हो चले हैं।
"क्या वाकई हिन्दू भी अतातई होने लगे हैं। अगर यह अनुमान सही है कुछ अन्य धर्मावलम्बियों की नजर में, तो यह मेरी नजर में भाग्य-सूचक प्रतीत हो रही है। "
आज जिस त्रादसी और परस्पर विरोधाभासी दौर से भारत गुजर रहा है वह मध्यकालीन भारत की याद दिलाता है। भारत आज अतीत के कुछ गलत निर्णयों के कारण कई दशकों से उग्रवाद, आतंकवाद, जातिवाद जैसे मुद्दों से जूझ रहा है। देश की समूची सकारात्मक शक्ति एव उर्जा इन्ही सब में जाया हो रही है। उग्रवाद, आतंकवाद जैसे नृशंश संजालों की सिंचाई कहाँ से हो रही है, क्या अब भी मंथन की ही विषय-वस्तु है? मंथन से एक बात यह भी निकल कर आती है कि भ्रष्टाचार ही वैसे नृशंश संजालों की जड़ों में दूध-पानी डालता है ।
सम्प्रदायवाद धार्मिक भ्रष्टाचार की कोख से उत्त्पन्न भष्मासुर है। सत्ता के अपहरण में सम्प्रदायवाद के घिनौने प्रयाशों को लोगों ने पिछले कई दशकों में बहुत करीब से देखा है। इसी साम्प्रादायीक उन्माद से आतंकवाद की तरफ भी एक रास्ता जाता है, जिसकी ओर असंख्य बेरोजगार युवक जाने-अनजाने चले जाते हैं ।
आज आजादी के ७० वर्षों के उपरांत भी हम अपने सभी पर्व संगीनों के साए में मानाने के लिए विवश हो रहे हैं । राष्ट्रिय पर्व (१५ अगस्त, २६ जनवरी)समेत सभी पर्व के पूर्व भारत सरकार आम जनता को आगाह करती है कि सुरक्षा की दृष्टि से सावधान रहें, सभी महत्वपूर्ण पर्व के पहले ही सभी प्रमुख इमारतों को, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, हवाई अड्डा,..... को छावनी में तब्दील कर दिया जाता है। क्या आजादी का संघर्ष इसीलिए किया गया था? क्या इस देश के युवाओं(हिन्दू, मुस्लिम,सिख.....) ने इसीलिए बलिदान दिया था कि अंग्रेजों के स्थान पर स्वदेशी लोग सत्ता का उपभोग करें।
हम आने वाले भारत को क्या विरासत में देने जा रहे हैं- एक बंटा हुआ भारत ! जहाँ के मुसलमानों को डर और भय के साये में जीना पड़ रहा है। क्या भय की यही परिभाषा है कि हिन्दुओं को अपने पर्व को मनाने के लिया राजाज्ञ लेनी पड़ रही है । हमारे नीति-नियंता अब तय करने लगे हैं कि हमारे धार्मिक जुलुस किस मार्ग से जायेंगें और कब हम अपने देवी-देवताओं का विसर्जन करेंगें। इसके बाद भी क्या आप यह कह सकते हैं कि भारत सिर्फ हिन्दुओं का मुल्क है ।
मुल्क के विभाजन के समय सरदार पटेल ने जोर देकर अपनी आवाज को उठाई थी कि जब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हो रहा है तो यहाँ के सारे मुसलमान पकिस्तान चलें जाएँ और सभी हिन्दू भारत लौट आये, जो हमारे प्रधानमत्री नेहरु और तथाकथित बापू को कबुल नहीं था। उसी वक्त पटेल ने कहा था कि आने वाला भारत एक दिन खून के आंसू रोयेगा । आज सरदार की दूरदर्शिता को हम अच्छी तरह से देख और समझ पा रहे हैं, पर विवश दिख रहे हैं कुछ भी कर सकने में क्यूंकि हमारे यहाँ सत्ता के शिखर पर जो भी बैठता है उसे मुल्क और हिन्दू बाद में, सत्ता पहले नजर आती है।
मेरे मुस्लिम देशवासिओं, भय और आतंक के साए में तुम नहीं हिन्दू जी रहे हैं अपने ही घर में। हिंदुओं के घर मे एक लाठी भी नही मिलेगी जरूरत पड़ने पर लेकिन तुम्हारे धर्मस्थलों पर बम और बंदुखों के जखीरे मिलते हैं।
हिन्दू एक धर्म नहीं संस्कृति है जो हजारों हजार वर्ष से चली आ रही एक सनातन परंपरा है, यह कोई कौम नहीं है जिसे तुम बोल-बोल कर भयभीत कर सकते हो क्यूंकि हिन्दू संस्कृति एक विरासत है जिसे मिटा सकने की माद्दा किसी धर्म में नहीं है। पृथ्वी पर जब तक एक भी बचा रहेगा, हिन्दू संस्कृति लहलहाती रहेगी।
आपका सौभाग्य नहीं, हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे राजनीतिज्ञों ने हमें बांटने में बहुत हद तक सफल रहे हैं जिसमे सर्वाधिक योगदान निश्चित ही कांग्रेस की रही है।
जहाँ तक असुरक्षा की बात इस मुल्क के सारे बड़े मुसलमान करते हैं सलमान, शाहरुख़, आमिर, आजम खान फारुख अब्दुल्ला, ओवैसी......... जैसे असंख्य लोग, जिन लोगों तक हिन्दू की बात तो छोड़ ही दिया जाए सामान्य से बहुत उपरी स्तर के मुसलमान भी इन लोगों तक सीधे नहीं पंहुच सकते हो, तो जरा गंभीरता पूर्वक हमारे इतिहास के पन्नों को पलट कर पढ़ लें कि यहाँ के हिन्दू महाभारत और कलिंग जैसे भीषण युद्ध भी लड़ा हैं। इतना रक्तपात हिन्दुओं ने देखा है कि उनका पुरुषार्थ मर चुका है, जिस दिन हिन्दुओं को किसी ने हनुमान की तरह उसकी शक्ति को याद दिला दिया तो अंजाम ऐ गुलिस्ता क्या होगा यह मैं शब्दों में पिरोना नहीं चाहता हूँ।
ये बड़े लोग देश के खिलाफ तो बोल देते हैं जिसका परिणाम भारत के आम मुसलामानों को झेलना पड़ता है जिन्हें इन सभी बातों से कोई लेना-देना नहीं होता है पर ये आम मुसलमान कुछ ख़ास मुसलमानों के चलते तंज सुनने की मानसिक पीड़ा को झेलने को लाचार होते हैं।
दोस्तों, हम हिन्दू नहीं हिंदी हैं, हिन्दुस्तान हमारी माँ है, हमारी अस्मिता है, इसे कलंकित करने की चेष्टा भी करोगे तो सामने वाले की वजूद ही मिट जायेगी, चाहे अपराधी हिन्दू ही क्यूँ न हो।
“कुछ बात ही ऐसी है कि हस्ती हमारी मिटती नहीं”।
जय माँ भारती !!

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