संसद @ मिडनाइट :~ वस्तु एवं सेवा कर(GST) अधिनियम
भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहाँ किसी को नहीं पता है आखिर समस्या क्या हैं। ये न्यूज़ वाले जो बता देते है उसें ही हम समस्या मान लेते हैं।
शैल चतुर्वेदी जी की एक पंक्ति याद आ रही है-
कुर्सी चीज ही ऐसी है,
जहाँ बैठते ही ईमान डोलती है।
अभी कुछ वर्षों की ही बात है जब प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी गुजरात के मुख्य मंत्री हुआ करते थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब मोदी जी गुजरात विधान सभा में चिल्ला- चिल्ला कर इस वस्तु एवं सेवा कर(GST) इस विधेयक का विरोध कर रहे थे (उनका यह भाषण विधान सभा के कार्यवाही में अंकित है, जिसे देख जा सकता है।) और कांग्रेस इसे सदन में पारित करना चाह रही थी अब ऐसा क्या हो गया है कि मोदी जी इस विधेयक को पास करवा कर कल से इसे लागू करने जा रही है और कांग्रेस अब इसका पुरजोर विरोध कर रही है।
हरिशंकर परसाई जी ने बड़े ही शानदार भाषा मे संसद के क्रिया कलापों पर व्यंग करते हुए कहा है ‘संसद की कार्यवाही को लेकर बार बार यह बात उठाई जाती है कि प्रति दिन संसद पर कितना खर्चा आता है ? प्रति मिनट कितने रुपये लग जाते हैं ? हर प्रश्न पर कितना खर्च होता है ? ये सवाल यों बेमानी है संसद किसी से पैसा माँगने नहीं जाती। वह खुद बजट पास करती है। जो बजट पास करे उसे चाहे जितना खर्च करने का हक़ है’।
गौरतलब है कि संसद की एक दिन की कार्यवाही पर लगभग 8 करोड़ रुपये का खर्च आता है। संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा के लिए इस समय आवंटित बजट लगभग 550 करोड़ का है। यह तो सिर्फ वह धनराशि है जो संसद को सुचारू रूप से चलने के लिए दी जाती है, इसके अलावा संसद में जो समितियां बनती हैं जिनकी अध्यक्षता यही माननीय सांसद लोग ही करते है इनके “अध्ययन यात्रा “ पर भी अरबों रुपये बर्बाद किये जाते हैं। ये अध्ययन यात्राएँ इसलिए होती हैं कि वे अपने विषय से सम्बंधित जानकारी को हासिल करें और उनका प्रयोग नियम बनाते वक्त करें , अब ये नीति निर्माता क्या बनाते है और वह लागू कैसे होता है ये हम सब बेहतर जानते है।
संसद की गरिमा उसकी उपयोगिता को लेकर सांसद कितने गंभीर हैं यह आये दिन संसद में होने वाली कारगुजारियों से स्पष्ट होता रहता है।
आधी रात में विशेष सत्र का आयोजन इतिहास की याद दिलाता है। साल 1947 की 14-15 अगस्त की आधी रात को देश ने अंग्रेजों से आजादी हासिल की थी और संसद के केंद्रीय हॉल में एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया था, जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 'नियति से साक्षात्कार' का प्रसिद्ध भाषण दिया था।
1947 आज़ादी के बाद ,1972 आज़ादी की सिल्वर जुबली, और फिर 1997 गोल्डन जुबली पर। इसके बाद अब वस्तु एवं सेवा कर(GST) लागू होने पर आधी रात में विशेष सत्र का आयोजन किया जा रहा है।
प्रश्न यह उठता है कि स्वतंत्रता के पश्चात क्या यह प्रथम अवसर है जब उथल-पुथल और राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से अव्यवस्थित भारत के सुधार के लिए कोई नई व्यवस्था लाकर भारत की जनता को यह नायाब से तोहफा दिया जा रहा है या लाचार और बेबस निरीह जनता के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से चूसी गई आयकर के पैसे से शेखचिल्ली की तरह अपनी दबंगता और भव्यता का भोंडा प्रदर्शन मात्र।
मुझे तो यह भय लग रहा है कि समूचा भारत, प्रधान सेवक जी के साथ-साथ कहीं आत्म-मुग्धता का शिकार तो नही हो रहा है।
इस पोस्ट से यह कदाचित न समझा जाये कि मैं कांग्रेस की तरह 'वस्तु एवं सेवा कर' का विरोध कर रहा हूँ बल्कि मेरा विरोध इस गरीब मुल्क में एक (अ) साधारण से कर सुधार व्यवस्था को करोड़ो करोड़ रुपये को बर्बाद(भव्यता और प्रचार) किये जाने पर है।
भारत एक लोक कल्याणकारी व्यवस्था के ढांचे पर निर्मित देश है, जहाँ हमारे कर से अर्जित आय का उपयोग और उपभोग जन-कल्याण के लिए होनी चाहिए न की नीति नियंताओं के द्वारा भोंडे प्रदर्शन में।
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