ईद :~ एक-दूसरे के साथ दुख-सुख बांटने की खुशी !!
निदा फाजली का एक शेर है :
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को, हंसाया जाए।।
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को, हंसाया जाए।।
ईद का शाब्दिक अर्थ है खुशी। दिल के एहसास की कहें तो दिल को दिलों से जोड़ने वाली खुशी और रूठे व गमजदा लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने का नाम ही ईद है तो यह कहीं अधिक सार्थक होगा। ईद पूरी दुनिया में भाईचारे का पैगाम लेकर आती है। पूरे एक महीने के रोजों की भूख और प्यास के अद्भुत एहसास के बाद यह खाने और खिलाने का दिन होता है और पूरे माशरे (समाज) में खुशी की लहरियां गूंजने लगती हैं। बच्चे, बूढ़े और जवान सभी नए-नए कपड़ों में सजे एक दूसरे के गले मिलते ईद की पाक मुबारकबाद देते दिखाई पड़ते हैं। सबसे ज्यादा खुशी तो बच्चों को होती है और उनकी खुशी देखते ही बनती है। और खुश हों भी क्यों नहीं। जिस ईदी के मिलने का वो साल भर इंतजार करते हैं आखिर वो आज आ ही गई है।
नमाजी इस दिन ईदगाहों और शहर की बड़ी मस्जिदों में नमाज पढ़ने जाते हैं। इस दिन की खास रिवायत है कि नमाजी एक रास्ते से नमाज पढ़ने जाते हैं और नमाज पढ़ कर दूसरे रास्ते से घर वापस आते हैं। यह इसलिए किया जाता है कि लोग एक दूसरे से अधिक से अधिक मिल-जुल सकें और आपस में प्यार और भाईचारा बांट सकें। सभी की यह कोशिश भी रहती है कि उनका करीबी, जानकार, या आस-पड़ोस का कोई भी व्यक्ति इस खुशी से वंचित न रह जाये। जो लोग गरीब हैं, कमजोर हैं, किसी कारण से कार्य करने में असमर्थ हैं, उनके लिए इस्लाम में जकात और फितरे का इंतजाम है, ताकि वे लोग पैसे की वजह से इस खुशी के मौके पर खुशी से वंचित न रह जाएं।
फितरा हर मुस्लिम पर फर्ज है कितु जकात के लिए कुछ नियम हैं। कहने का तात्पर्य केवल यही है कि समाज के अभावग्रस्त लोगों को भी अपनी खुशी में शामिल करना, समाज में जो लोग इस खुशी से वंचित है उन्हें भी साथ मिला कर अपनी खुशियों और सुखों में बराबर का भागीदार बनाना, और समाज में व्याप्त अमीर-गरीब, ऊंच-नीच की भावनाओं को दरकिनार कर सबको एकाकार बना देना। ईद का मतलब भी यही है और मकसद भी।
जो लोग गमजदा हैं उनके जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की जाए और उन्हें यह बताने व समझाने का प्रयत्न किया जाए कि ईद की खुशी केवल हमारे लिए ही नहीं, तुम्हारे लिए भी है। ईद की खुशी केवल इस्लाम के मानने वालों के लिये ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए है। इस्लाम की इस भावना के मद्देनजर यह जरूरी हो जाता है ईद की नमाज के बाद सभी लोग उन घरों में जाएं जिनके सगे-संबंधी, रिश्तेदार, भाई-बंधु उनसे बिछड़ गए हैं। उन्हें सांत्वना दें कि वे केवल उनके ही नहीं बल्कि हम सभी के सगे भाई-बंधु हैं और उनके न होने का दुख हम सभी को है। हम सभी उनके गमों और दुखों में बराबर के भागीदार हैं। तभी ईद के भाईचारे का पैगाम सही अर्थों में लोगों तक पहुंचेगा कि इस्लाम की नजर में कोई छोटा-बड़ा, अपना-पराया नहीं होता। सभी के गम साथ-साथ हैं और सभी की खुशियां भी। यही ईद का सच्चा और सीधा अर्थ भी है।
सबों की ईद की मेरी हार्दिक शुभकामना।
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