शौर्य दिवस:- महाराणा प्रताप


वैसे तो भारत की पवित्र भूमि अनेक महान योद्धाओ के जीवन, त्याग, बलिदान और बहादुरी के गाथाओ से इतिहास भरा पड़ा है उनमे से प्रमुख रूप से महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान हैं। यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मुगुलों को छठी का दूध याद दिला दिया था। इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गोरवान्वित हैं। महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राणा थे। महाराणा प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे। ये ऐसे बहादुर राजपूत थे जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की, भूखे रहना काबुल किया, घांस की रोटी खाने पसंद किया परंतु अपने निजी सुख के लिए अपनी प्रजा के स्वाभिमान से कभी समझौता नही किया। इन्होने सदैव अपने एवं अपने परिवार से उपर प्रजा को मान दिया। एक ऐसे राजपूत थे जिसकी वीरता को अकबर भी सलाम करता था।
महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूर्ण थे ही लेकिन वे एक भावुक एवम धर्म परायण भी थे उनकी सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थी।
हल्दीघाटी की युद्द 18 जून 1576 को हुआ था यह युद्ध इतिहास के पन्नो में महाराणा प्रताप के वीरता के लिए जाना जाता है महज 20000 सैनिको को लेकर महाराणा प्रताप ने मुगलों के 80000 सैनिको का मुकबला किया जो की अपने आप में अद्वितीय और अनोखा है।
हल्दीघाटी घाटी युद्ध के पश्चात तो बादशाह अकबर को महाराणा प्रताप के पराक्रम से इतना खौफ हो गया था की उसने अपनी राजधानी आगरा से सीधा लाहौर से विस्थापित हो गया था और फिर दुबारा महाराणा प्रताप के पश्चात ही उसने अपनी राजधानी आगरा को बनाया।
महाराणा प्रताप के पराक्रम की तुलना किसी से भी नही की जा सकती है वे आज भी हमारे देश भारत के शौर्य साहस राष्ट्रभक्ति की मिशाल बन गये है जिसके नाम से ही हर भारतीय अपने आप को गौरवान्वित करता है।
मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले ऐसे वीर सम्राट, शूरवीर, राष्ट्रगौरव, पराक्रमी, साहसी, राष्ट्रभक्त को कोटि-कोटि नमन।

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