खुद की खोज में !!

खुद को खोजने के क्रम में पाया कि :~
हमें बचपन में ही सिखा दिया जाता है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए, सदैव सत्य बोलना चाहिए। और साथ ही यह उम्मीद भी की जाती है कि आगे आने वाली पीढ़़ी को भी हम यहीं सिखाएं।
सूर्य तो सिर्फ बाहर का अन्धकार मिटाता है लेकिन ज्ञान अन्दर का भी अन्धकार मिटाता है।
दुसरो को कुछ देने का सुख क्या होता है, उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता, छोटे से छोटा वाकया भी जीवन पार लगाने वाली होती है, कुछ भी हो जाये मुस्कुराना मत छोड़िये, खुद ही खुद का चौकीदार बनिये।
सिर्फ अपने मन की सुनिये,अपने अंतरात्मा की आवाज सुनें, किसी के बहकावे में मत आइये।
जो कदम बढायेगा उसे मंजिल मिल ही जायेगी।
हमें ऐसी कोई भी बात किसी के लिए नहीं कहना चाहिए जो उसके सामने नहीं कह सकते। सौरी बोलना तो सीख लिया हमने, क्या चुप रहना भी सिख लिया है? अपने आप से पूछिये। दिया जलाने के लिए कई प्रयत्न करने पड़ते है लेकिन बुझाने के लिए एक फूक ही काफी है।
सुख और दुःख दोनों मेहमान हैं आते है और चले जाते है। बीज अच्छा होगा तो फल भी अच्छे ही लगेंगें ,यानी जैसा बोयेंगे वैसा ही काटेंगे।
हम धर्म के रास्ते चलते है तो धर्म भी हमारे रास्ते चलता है। सोंचो जरा, मनुष्य खुश हो गया तो क्या देगा और अगर भगवन खुश हो गया तो क्या देगा?
.......नीरज

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