दलितों पर हो रहे अमानुषिक अत्याचार ??

माफ़ करना मित्रों, वेश्या का भी एक चरित्र होता है जो पैसा देता है वही उसका मित्र होता है, पर नेताओं का तो कोई चरित्र ही नहीं होता, जब चाहा जनता को पान के बीड़े की तरह चबाया और थूक दिया और देश को चुनाव के चूल्हे में फूंक दिया !! @ स्व. शैल चतुर्वेदी शैल 

कुछेक दिनों से मिडिया इस बात की मातमपुर्सी मना रही है कि गुजरात सहित सभी प्रान्तों में दलितों पर अमानुषिक अत्याचार हो रहा है उन्हें सताया जा रहा है। दरअसल उन्हें उनके सताए जाने से कोई परहेज नहीं है परेशानी इस बात की है कि उन्हें हिंदू सता रहे हैं, उन्हें सवर्ण लोग दबा रहे हैं। दलितों को प्रताड़ित करने के मामले में कुछ मिडिया समेत राजनीतिक दलों ने आपसी सहमती से एक आरक्षण लागु कर रखा है अगर मामला हिंदूवादी और सवर्णों द्वारा हो तो संसद से सड़क तक अराजक हो जाओ और अगर यह मुद्दा अल्पसंख्यको की तरफ इंगित करे तो मौन हो जाओ। फूट डालकर फायदा लेने के लिए ये सब कितना गिर सकते है। इसमें मीडिया की भी भूमिका नकारात्मक ही दिख रही है। 

दलितों को समस्या रही है ये बात सच है। दलितों को समाज में ऊपर लाने, रोजगार देने और मुख्या धारा से जोड़ने की जरुरत है और ये बहुत हद्द तक हो चुका है। लेकिन कुछ जगह जहां दलितों के साथ समस्या है वहा और सामान्य वर्ग के लोगो के साथ भी समस्या है। उसमे दलित स्वर्ण का कोई मुद्दा नहीं है वो मुद्दा है गुंडागर्दी का।

मायावती टिकट बेचने का धंधा करती हैं!! ऐसे भी तो कहा जा सकता था? लेकिन जोश और उन्माद में होश खोने वालों को कौन सिखाये। पूर्व में संघ के शीर्षस्त महानुभाव द्वारा दिए गए एक विवादित बयान से एक राज्य पुनः जंगल राज की तरफ अग्रसारित है। 

आज सब विपक्ष एक व्यक्तिगत बयान पर दलित दलित चिल्ला रहे हैं। गलत हुआ ही है और बीजेपी दयाशंकर को बाहर का रास्ता दिखा दिया। समानता का अधिकार का प्रयोग करते हुए मायावती के पार्टी के कार्यकर्ता जो दयाशंकर सिंह के माँ- पत्नी और बहन के खिलाफ खुलेआम जिस तरह जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं तो फिर यह हाय-तौबा करने की आवश्यकत क्या है दोनों ही तो बराबर के अपराधी हो गए। एक बात पूछना चाहता हूँ उन सभी से कि जब मायावती पर सपा के गुंडों ने गेस्ट हाउस पर हमला किया और नंगा कर दिया कपड़ा फाड़ कर तो यही बीजेपी ने बचाया जिससे उनका एक नेता जान गवां बैठा तब विपक्ष कहाँ था, इमरान मसूद मोदी जी को टुकड़े टुकड़े करने की बात कहा था अब कांग्रेस में UP का उपाध्यक्ष है, रीता बहुगुणा बोली थी कि जो मायावती का बलात्कार करेगा उसको ३० लाख दूँगी, मुलायम बलात्कार पर बोले की बच्चों से गलती हो जाती है, एक नेता सरेआम 'टंच माल' चेक करके जनता को बताकर भी सबकी आँखों का तारा है। सलमान खान भी रेप पीड़ित पर गलत बयां दिए ---- ऐसे बहुत किस्से हैं तब कहाँ इनकी नैतिकता और जमीर सब मर गयी थी। एक व्यक्ति ने गलत किया तो क्या पूरा पार्टी को बदनाम किया जाना उचित है। बीजेपी ने तो कार्यवाई किया पर बाकी पद लेकर मलाई खा रहे हैं। दलित का मतलब मायावती नहीं है। रामविलास, केशव मौर्य रामदास आठवले उदित राज जीतन राम मांझी सब बीजेपी से जुड़े हैं क्यों की बीजेपी ही दलित की भलाई करेगी बाकी राजनीती करेंगे। किसी पार्टी का एक आदमी गलत करे तो पार्टी गलत नहीं होती। कांग्रेस कितना महिला की इज़्ज़त करती है ये नैना शाहनी, भंवरी देवी आदि उदहारण है, केजरीवाल के नेता से परेशान एक महिला आत्महत्या कर लिया पर वो पाक है और बीजेपी का एक नेता गलत कहा तो मोदी बुरे हैं। जब की उसको पार्टी निकाल चुकी है कितने दलित महिला दूसरे पार्टी द्वारा अपमानित हुई इतिहास गवाह है। मायावती भी सिर्फ पैसा बनाती है। हर दलित औरत का भाग्य मायावती जैसा नहीं है। दलित का नाम बेच कर ये सब कमाने वाले हैं। अब इनकी जमीन खिसक रही है तो दलित दलित चिल्ला कर दलितों को बहका रहे हैं।

ये तमाम दल मुसलमानों और दलितों को बेवकूफ़ ही नहीं बना रहे हैं, बल्कि उनके अंदर कथित तौर पर अल्पसंख्यक और असुरक्षित होने का भाव जगा रहे हैं।

अंत में एक बात और कहना चाहूँगा कि सदन में राहुल गाँधी का सोना अनुचित नहीं है बल्कि सदन में उनका होना ही सर्वथा अनुचित है।

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