स्वामी विवेकानंद के बहाने:~ कैसा होगा धार्मिक इंसान !!
अक्सर संगठित धर्मों की जमी-जमाई बासी परिभाषाओं, उनकी हृदयहीनता पर संवेदनशील लोग सवाल उठाते रहते हैं। तो ऐसे ही सोचा कि कैसा होना चाहिए एक सही अर्थ में धार्मिक व्यक्ति...
यदि कोई सही अर्थ में धार्मिक होगा, तो सबसे पहले वह दाढ़ी बढ़ाकर, अलग किस्म के कपड़े पहनकर अलग दिखने की कोशिश नहीं करेगा। वह अपने व्यक्तित्व को लेकर एक और विभाजन का निर्माण नहीं करेगा। जैसे बाकी लोग हैं, वैसा ही दिखेगा। वह प्रश्न उठाएगा, प्रश्नों को आमंत्रित करेगा न कि उनसे घबराकर धर्म ग्रंथों के पीछे पनाह लेगा। न ही कहानी किस्सों में उलझाएगा, न किसी रूमानी भविष्य या अतीत की यात्रा पर लोगों को ले जाने की कोशिश करेगा। सारे सतही खेल-तमाशों के बीच वह इशारे करेगा उन आवाजों की ओर, जो हमारी घायल दुनिया के बेढ़ेंगे शोर के नीचे कहीं दब गई हैं। हल्के, महीन इशारे करेगा और शायद आपको छोड़ देगा, अपने ह्रदय के क्रूर एकाकीपन के साथ, उस सत्य की खोज करने के लिए जिसे आप खुद के बाहर कहीं ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन वह आपके दर्द के अहसास में आपके साथ हमेशा बना रहेगा।
जो सही अर्थ में धार्मिक होगा, वह सही अर्थ में प्रेमी भी होगा... हमेशा खुश रहने वाला, प्रेम से भरा हुआ, दोस्ती के भाव वाला प्रेमी। आपके करीब भी, आपसे दूर भी। वह अपनी अनुपस्थिति में आपको प्रेम करेगा, आपको सिखाएगा, आपसे सीखेगा, आपका हाथ थामेगा। लेकिन अपनी अनुपस्थिति में। वह एक अर्थ में क्रूर भी होगा, आपके लिए नहीं, हर उस चीज़ के लिए जिसने इस धरती को मैला कर दिया है, हमारे हर दिन को एक न खत्म होने वाले संघर्ष में बदल दिया है, जिसने बचपन की उम्र कम दी है। ऐसी हर चीज के लिए वह झुलसा देने वाली एक लपट होगा। वह एक मशाल होगा। न ही उसकी कोई जात होगी, न कोई मज़हब, न कोई देश, न कोई ठिकाना। न वह कोई स्त्री होगा, न ही पुरुष। एक अपरिभाषित, अज्ञेय अस्तित्व।
स्वामी विवेकानंद जी को विनम्र श्रंधांजलि
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