आरुषि के बहाने अब हम बच्चों के दिलों में भी झाँकें !!
देश की अब तक सबसे बहुचर्चित दोहरे कत्ल संबंधी “'मर्डर मिस्ट्री” का अदालत की ओर से पटाक्षेप हो चुका है। लगभग साढ़े पांच वर्ष पूर्व 16 मई 2008 को नोएडा में हुए आरूषि तलवार व हेमराज के कत्ल पर गाजि़याबाद की सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुनाते(26 नवंबर 2013) हुए आरूषि के माता-पिता नुपुर तलवार व डॉक्टर राजेश तलवार को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है।
अदालत ने भले ही बिना पर्याप्त सुबूत और गवाह के ही इन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है परंतु आपराधिक गतिविधियों पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ शुरु से ही इस बात पर संदेह कर रहे थे कि हो न हो यह दोहरा कत्ल आरूषि के माता-पिता द्वारा ही अंजाम दिया गया है तथा इस दोहरी हत्या का कारण तलवार दंपति द्वारा अपनी 14 वर्षीय पुत्री को 45 वर्षीय अपने घरेलू नौकर नेपाली मूल के हेमराज के साथ आपत्तिजनक हालत में देखा जाना है। लिहाज़ा इसे शुरु से ही ऑनर किलिंग माना जा रहा था। परंतु चूंकि तलवार दंपति इतने संभ्रांत व प्रतिष्ठित वर्ग से संबद्ध थे तथा इस दोहरे हत्याकांड के बाद उन्होंने लंबे समय तक बड़ी ही खूबसूरती और सफाई के साथ जांच अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश की। इससे थोड़ा-बहुत संदेह तो ज़रूर होने लगा था कि हो सकता है तलवार दंपति के अतिरिक्त इस परिवार से रंजिश रखने वाले किसी दूसरे व्यक्ति ने ही यह अपराध अंजाम दिया हो।
इस मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में नाकाम रहने वाली सीबीआई ने तो मामले में अपनी क्लोज़र रिपोर्ट भी अदालत में पेश कर दी थी। परंतु गाजि़याबाद की सीबीआई की विशेष अदालत ने इसी क्लोज़र रिपोर्ट को ही मुकद्दमे का आधार मानकर सुनवाई पूरी की और आखिरकार इस आधार पर तलवार दंपति को आजीवन कारावास की सज़ा सुना डाली कि चुुुकी तलवार दंपति के घर में हत्या के समय केवल तलवार दंपति ही वहां मौजूद थे लिहाज़ा इस दोहरे हत्याकांड को उन्होंने ही अंजाम दिया है।
मुकद्दमे संबंधी इस पूरे प्रकरण में एक बात और भी विचारणीय है कि वर्तमान दौर में उपलब्ध तमाम आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी साधनों व मशीनों के बावजूद सीबीआई अथवा दूसरी जांच एजेंसियां तलवार दंपति से न तो हत्या का सच उगलवा सकीं न ही झूठ पकडऩे वाली मशीन उनके झूठ को पकड़ सकी। बहरहाल साढ़े पांच वर्ष तक चले इस रहस्यमयी हत्याकांड के पेचीदा मुकद्दमे में सीबीआई अदालत द्वारा 204 पृष्ठों का अपना जो फैसला सुनाया गया है उसके बाद तलवार दंपति अब गाजि़याबाद की डासना जेल में अपनी नई भूमिका शुरु कर चुके हैं। डाक्टर राजेश तलवार को कैदी नंबर 9342 के रूप में नई पहचान दी गई है तथा उन्हें जेल के स्वास्थय विभाग संबंधी टीम में सेवा करने का काम सौंपा गया है। इसी प्रकार नुपुर तलवार डासना जेल में कैदी नंबर 9343 के रूप में चिन्हित की जाएंगी तथा उनका काम कैदियों को शिक्षित करना होगा। रविवार के अतिरिक्त प्रतिदिन सुबह दस बजे से सायं पांच बजे तक उन्हें अपनी ड्यूटी देनी होगी। इसके बदले इन्हें पारिश्रमिक भी प्रदान किया जाएगा।
इस पूरे प्रकरण को लेकर कुछ ज्वलंत प्रश्न भी सामने आते हैं। जिनका जवाब अदालत तो नहीं परंतु समाज को ही तलाशना पड़ेगा। एक तो यह कि संभ्रांत एवं विशिष्ट परिवार की परिभाषा क्या है? क्या चंद पैसे पास आ जाने, गोल्फ खेलना शुरु कर देने, घर में अकेले या दोस्तों के साथ बैठकर व्हिस्की के जाम टकराने, लायंस क्लब या रोटरी क्लब के सदस्य बनने या जिमख़ानों में जाकर जुआ खेलने अथवा क्लब में डांस करने मात्र जैसी खोखली व ढोंगपूर्ण बातों से कोई व्यक्ति संभ्रांत अथवा विशिष्ट कहा जा सकता है?
उपरोक्त परिस्थितियां ही ऐसी होती हैं जो कि तथाकथित संभ्रांत परिवार के बच्चों को गलत रास्ते पर चलने तथा गलत दिशा में अपना दिमाग दौड़ाने का मौका व समय उपलब्ध कराती हैं। ज़ाहिर है जब माता-पिता अपनी ऐशपरस्ती और मनोरंजन में मशगूल हैं तो माता-पिता की उपेक्षा का शिकार उनका बच्चा भी अपनी मनमर्जी के रास्ते पर आसानी से चल पड़ेगा। और आधुनिकता के इस दौर में जबकि घर बैठे कंप्यूटर,मोबाईल फोन, लैपटॉप तथा इनपर दिखाई जाने वाली तरह-तरह की अच्छी-बुरी वेबसाईटस मौजूद हैं फिर आखिर वह मां-बाप अपने बच्चों को किसी गलत राह पर जाने से कैसे रोक सकते हैं जिन्हें अपनी ऐशपरस्ती से ही फुर्सत नहीं? यदि तलवार दंपति ने पहले से ही इस बात पर निगरानी रखी होती कि जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने जा रही उनकी इकलौती पुत्री घर में रहने वाले नौकर से इतना अधिक घुलने-मिलने न पाए तो शायद नौबत यहां तक न पहुंचती। परंतु ऐसा नहीं हो सका। और माता-पिता की निगरानी के अभाव में आरूषि-हेमराज प्रकरण यहां तक आ पहुंचा कि तलवार दंपति को इन दोनों को मौत के घाट उतारना पड़ा।
आरूषि-हेमराज दोहरे कत्ल को लेकर एक और बात साफतौर पर उजागर होती है कि भले ही कोई भारतीय अपने धन व संपन्नता के बल पर कितना ही पाश्चात्य होने का अभिनय क्यों न करे परंतु हकीकत में उसके अंदर भारतीय संस्कृति व भारतीय परंपरा ही प्रवाहित होती रहती है। यदि इस प्रकार की घटना पश्चिमी देशों में हुई होती और कोई माता-पिता अपने नौकर को अपनी पुत्री के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लेता तो संभवत: मामला दोहरे कत्ल तक तो कतई नहीं पहुंचता। क्योंकि पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता ऐसी बातों को इतना अधिक महत्व नहीं देती है। परंतु हमारे देश में तथा दक्षिण एशिया के और कई देशों में इस प्रकार के रिश्तों को अवैध व असहनीय माना जाता है।
परिणामस्वरूप तथाकथित ऑनर किलिंग के नाम से कहीं न कहीं किसी न किसी की हत्या होने की खबरें आती रहती हैं। निश्चित रूप से किसी की हत्या करना समाज व कानून की नज़र में बहुत बड़ा अपराध है और ऐसा हरगिज़ नहीं होना चाहिए। परंतु इस वास्तविकता से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे देश में बेटी की इज़्ज़त को जिस प्रकार परिवार की इज़्ज़त व आबरू से जोड़कर देखा जाता है उस सोच के मद्देनज़र यह घटना यदि डाक्टर राजेश तलवार के अतिरिक्त किसी दूसरे परिवार में भी घटी होती तो भी संभवत: उसका अंजाम भी यही होना था। कोई भी भारतीय माता-पिता अपनी किशोरी को अपने घर के नौकर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखना कतई सहन नहीं कर सकते।
इसमें तलवार दंपति का कोई अति विशेष दोष नहीं बल्कि इस प्रकार के मानसिक हालात के पैदा होने का कारण तलवार दंपति का भारतीय समाज में परवरिश पाना तथा यहां उनका संस्कारित होना ही शामिल है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत वर्ष ही वह देश है जहां लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था ताकि परिवार के लोगों का सिर किसी के आगे झुकने न पाए। ऐसी संस्कृति व परंपरा वाले देश में कोई माता-पिता अपनी 14 वर्षीय बेटी को घर के नौकर के साथ आपत्तिजनक अवस्था में आखिर कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? आरूषि-हेमराज की हत्या व इसके बाद तलवार दंपति को सुनाई गई सज़ा से संबंधित उपरोक्त सुलगते सवालों के जवाब भारतीय समाज ज़रूर तलाश कर रहा है।
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